किस्सा एक छोटे से गांव के एक बिखरे परिवार की, की कैसे एक औरत उसके गृहस्थ जीवन को सवार देती है।
![]() |
Pic credit - Google/https://commons.wikimedia.org |
सब मजदूरों को शाम को उनके मेहनत की मजदूरी मिल जाती थी। जग्गू और उसके लड़के चना और गुड़ लेते थे। चना भून कर गुड़ के साथ खा लेते थे।
गांव वालों ने जग्गू को बड़े लड़के की सादी करने की सलाह दी। उसकी शादी हो गई और कुछ दिन बाद गौना भी आ गया। उस दिन जग्गू की झोंपड़ी के सामने बड़ी चहल कदमी मची हुई थी। बहुत लोग इकठ्ठा हुये नई बहू को देखने के लिए। फिर धीरे धीरे भीड़ ख़तम हुवा। आदमी काम पर चले गये और औरते अपने-अपने घर को चली गई। जाते जाते एक बुढ़िया ने बहू से कही की तुम्हारे घर के पास ही हमारा भी घर है। किसी चीज की जरूरत हो तो संकोच मत करना, मांग लेना आकर। सबके जाने के बाद बहू ने घूंघट उठा कर अपनी ससुराल को देखा तो उसका कलेजा मुंह को आ गया। जर्जर सी झोंपड़ी, खूंटी पर टंगी कुछ पोटलियां और झोंपड़ी के बाहर बने छ चूल्हे (जग्गू और उसके सभी बच्चे अलग अलग चना भूनते थे)। बहू का मन हुआ कि उठे और सरपट अपने गांव भाग चले। पर अचानक उसे सोच कर धक्का लगा की वहां कौन से नूर गड़े हैं। मां है नहीं। भाई भौजाई के राज में नौकरानी जैसी जिंदगी ही तो गुजारनी होगी। यह सोचते हुये वह जोर-जोर से रोने लगी। रोते रोते थक कर शान्त हुई। मन में कुछ सोचा। पड़ोसन के घर जा कर पूछा–अम्मां एक झाड़ू मिलेगा? बुढ़िया अम्मा ने झाड़ू, गोबर और मिट्टी दी। साथ में अपनी पोती को भेज दिया। जग्गू और उसके लड़के जब लौटे तो एक ही चूल्हा देख भड़क गये। चिल्लाने लगे कि इसने तो आते ही सत्यानास कर दिया। अपने आदमी का छोड़ बाकी सब का चूल्हा फोड़ दिया। झगड़े की आवाज सुन बहू झोंपड़ी से निकली। और बोली आप लोग हाथ मुंह धो कर बैठिये, मैं खाना निकालती हूं। सब अचकचा गये। हाथ मुंह धो कर बैठे। बहू ने पत्तल पर खाना परोसा रोटी, साग, चटनी।मुद्दत बाद उन्हें ऐसा खाना मिला था। खा कर अपनी अपनी कथरी लेकर वे सब सोने को चले गये।
सुबह काम पर जाते समय बहू ने उन्हें एक एक रोटी और गुड़ दिया। चलते समय जग्गू से उसने पूछा – बाबूजी, मालिक आप लोगों को चना और गुड़ ही देता है क्या? जग्गू ने बताया कि मिलता तो सभी अन्न है पर वे चना-गुड़ ही लेते हैं। आसान रहता है खाने में। बहू ने समझाया कि सब अलग अलग प्रकार का अनाज लिया करें। देवर ने बताया कि उसका काम लकड़ी चीरना है। बहू ने उसे घर के ईंधन के लिये भी कुछ लकड़ी लाने को कहा।
बहू सब की मजदूरी के अनाज से एक एक मुठ्ठी अन्न अलग रखती। उससे बनिये की दुकान से बाकी जरूरत की चीजें लाती। जग्गू की गृहस्थी धड़ल्ले से चल पड़ी। एक दिन सभी भाइयों और बाप ने तालाब की मिट्टी से झोंपड़ी के आगे बाड़ बनाया। बहू के गुण गांव में चर्चित होने लगे।
जमींदार तक यह बात पंहुची। वह कभी-कभी बस्ती में आया करता था। आज वह जग्गू के घर उसकी बहू को आशीर्वाद देने आया। बहू ने जमींदार के पैर छूकर प्रणाम किया तो जमींदार ने उसे एक हार दिया। हार माथे से लगा बहू ने कहा कि मालिक यह हमारे किस काम आयेगा। इससे अच्छा होता कि मालिक हमें चार लाठी जमीन दिये होते झोंपड़ी के दायें बायें, तो एक कोठरी बन जाती। बहू की चतुराई पर जमींदार हंस पड़ा। बोला – ठीक है, जमीन तो जग्गू को मिलेगी ही यह हार भी तुम्हारा हुआ।
औरत चाहे घर को स्वर्ग बना दे चाहे नर्क, औरत ही हमारे देश, समाज, और यहाँ तक की हर व्यक्ति को सवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। Ritlalyadav yadav
अगर आप भी खबरों का कलेक्शन कर हमारे साथ साझा करना चाहते है तो Sign up with Email पर click करके डिटेल भर कर submit करे।
Image Copyright from third party
यह Post पत्राकारिता सामग्री नहीं है और न ही यह Worship News 24 के विचारों का प्रतिनिधित्व करता है। इसे Worship News 24 वीमीडिया लेखक द्वारा कॉपीराइट किया गया है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें